पवित्र धार्मिक स्थलों वाले भारत देश में जब कभी भी श्रद्धालु मोक्ष की तलाश में इधर-उधर भटकते हैं तो उन्हें धर्म की नगरी हरिद्वार याद आती है। 'हरिद्वार' का शाब्दिक अर्थ है, 'हरि तक पहुंचने का द्वार'। उत्तराखंड में पवित्र गंगा नदी के किनारे बसा हरिद्वार भारत के सात सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। हरिद्वार के अलावा इसमें अयोध्या, मथुरा, वाराणसी, कांचीपुरम, उज्जैन, द्वारका शामिल हैं। यह जगह सदियों से पर्यटकों और श्रद्धालुओं को आकर्षित करता आ रहा है।
पौराणिक इतिहास
हरिद्वार शिवालिक पहाड़ियों के कोड में बसा हुआ हिन्दू धर्म के अनुयायियों का प्रसिद्ध प्राचीन तीर्थ स्थान है। यहां पहाड़ियों से निकल कर भागीरथी गंगा पहली बार मैदानी क्षेत्र में आती है। हिंदू धर्मग्रंथों में हरिद्वार को कपिल्स्थान, मायापुरी, गंगाद्वार जैसे विभिन्न नामों से पुकारा गया है। हरिद्वार का प्राचीन पौराणिक नाम 'माया' या 'मायापुरी' है, जिसकी सप्त मोक्षदायिनी पुरियों में गणना की जाती थी। ऐसा कहा जाता है कि चीनी यात्री युवानच्वांग ने भारत यात्रा के दौरान इसी शब्द का 'मयूर' नाम से वर्णन किया था। महाभारत में इस स्थान को 'गंगाद्वार' कहा गया है। इस ग्रंथ में इस स्थान का प्रख्यात तीथरें के साथ उल्लेख है।
यह पवित्र स्थल चार धाम का प्रवेश द्वार भी है। गंगा के उत्तरी भाग में बसे हुए 'बदरीनारायण', 'केदारनाथ' नामक भगवान विष्णु और शिव के प्रसिद्ध तीथरें के लिये इसी स्थान से मार्ग जाता है। इसीलिए इसे 'हरिद्वार' तथा 'हरद्वार' दोनों ही नामों से अभीहित किया जाता है।
भारतीय पुराणों में ऐसी मान्यता है कि हरिद्वार में समुद्र मंथन से प्राप्त किया गया अमृत गिरा था। तभी से यहां बारह वर्ष में आयोजित होने वाले कुंभ के मेले का आयोजन किया जाता है। कुंभ मेले के दौरान यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों में भी इस शहर की पवित्र नदी गंगा में डुबकी लगाने और अपने पापों का नाश करने के लिए वर्ष भर श्रद्धालुओं का आना-जाना यहां लगा रहता है।
महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल हर की पौड़ी
भारत के सबसे पवित्र घाटों में से एक हर की पौड़ी को ब्रह्मकुंड ने नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि यह घाट विक्रमादित्य ने अपने भाई भतृहरि की याद में बनवाया था। हर रोज संध्या के वक्त यहां महाआरती आयोजित की जाती है जिसे देखकर एक अलग ही अनुभूति होती है।
हर की पौड़ी के पीछे के बलवा पर्वत की चोटी पर मनसा देवी का मंदिर बना है। हरिद्वार जाने वाले श्रद्धालु इस मंदिर के दर्शन करना नहीं भूलते। मंदिर तक जाने के लिए पैदल रास्ता है।
चंडी देवी मंदिर
गंगा नदी के दूसरी ओर नील पर्वत पर चंडी देवी मंदिर बना हुआ है। कहा जाता है कि आदिशंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में चंडी देवी की मूल प्रतिमा यहां स्थापित करवाई थी। बाद में इस मंदिर को कश्मीर के राजा सुचेत सिंह द्वारा 1929 ई. में बनवाया गया था। चंडीघाट से 3 किलोमीटर की ट्रैकिंग के बाद यहां पहुंचा जा सकता है।
माया देवी मंदिर
माया देवी मंदिर को भारत के प्रमुख शक्तिपीठों में एक माना गया है। कहा जाता है कि शिव की पत्नी सती का हृदय और नाभि यहीं गिरा था। यह मंदिर हरिद्वार से कुछ ही दूरी पर स्थित है।
सप्तऋषि आश्रम
सप्तऋषि आश्रम की खूबसूरती की अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि इसके सामने गंगा नदी सात धाराओं में बहती है इसलिए इस स्थान को सप्त सागर भी कहा जाता है। इसके पीछे की मान्यता यह है कि जब गंगा नदी बहती हुई आ रही थी तो यहां सात ऋषि गहन तपस्या में लीन थे। गंगा ने उनकी तपस्या में विघ्न नहीं डाला और स्वयं को सात हिस्सों में विभाजित कर अपना मार्ग बदल लिया।
भारत माता मंदिर
भारत माता मंदिर सप्त सरोवर हरिद्वार में आश्रम के पास में स्थित अपनी ही तरह का एक पवित्र स्थान है। यह मंदिर भारत माता को समर्पित है। वर्ष 1983 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने इस मंदिर का उद्घाटन किया था। इस मंदिर में आठ मंजिलें हैं एवं यह 180 फुट की उंचाई पर स्थित है।
कैसे पहुंचें वायुमार्ग से यहां पहुंचने के लिए देहरादून में स्थित जौली ग्रांन्ट एयरपोर्ट नजदीकी एयरपोर्ट है। एयरपोर्ट से हरिद्वार की दूरी लगभग 45 किमी. है। वहां पहुंचने के लिए बस या टैक्सी की सेवा ली जा सकती हैं।
हरिद्वार रेलवे स्टेशन भारत के अधिकांश हिस्से से जुड़ा हुआ है। हरिद्वार के लिए दिल्ली से देहरादून जाने वाली शताब्दी एक्सप्रेस एक उपयुक्त ट्रेन है।
हरिद्वार आप सड़क मार्ग से भी पहुंच सकते हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग 45 हरिद्वार से होकर जाता है। यहां जाने के लिए राज्य परिवहन निगम की बसें अपनी सेवाएं मुहैया कराती हैं।
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